‘उत्तररामचरितम्’ में वर्णित दाम्पत्यप्रेम
Abstract
संस्कृत साहित्य में वर्णित प्रेम के विभिन्न स्वरूपों का अनुशीलन करने के पश्चात् प्रेम की चार श्रेणियाँ निर्धारित की जा सकती हैं- प्रथम प्रकार का प्रेम गाधर्व विवाह के प्रसंग में दृष्टिगोचर होता है जहाँ नायक और नायिका का अकस्मात् मिलन होता है तथा इनमें परस्पर अनुराग उत्पन्न हो जाता है।इस प्रकार के प्रेम कथा का प्रसंग विवाह के पश्चात् प्रायः समाप्त हो जाता है। द्वितीय प्रकार का प्रेम राजाओं के द्वारा अन्तःपुर में किए जाने वाले भोग-विलास का चित्रण मात्र है, यथा- उदयन संबंधी प्रेमाख्यान। तृतीय प्रकार का प्रेम वह है जो चित्रदर्शन, स्वप्नदर्शनादि से उत्पन्न होता है तथा विवाह चित्रण के साथ समाप्त हो जाता है, यथा नल-दमयंती का प्रेम। चतुर्थ प्रकार का प्रेम विवाहोपरांत स्वाभाविक रूप से प्रारंभ होता है तथा जीवन की विकट परिस्थितियों में और अधिक निखर कर सामने आता है। संभवतः यही दांपत्यप्रेम का वास्तविक स्वरूप है और इसी श्रेणी में महाकवि भवभूति की अनुपम नाट्यकृति ‘उत्तररामचरितम्’ में वर्णित प्रेम भी आता है।
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