भाषागत परिवरà¥à¤¤à¤¨ को आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤à¥ करती हिनà¥à¤¦à¥€ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾

डाॅ. सुषमा शाही

Abstract


सारांश:-
भाषा की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ के लिठउसके आदरà¥à¤¶ और मानक रà¥à¤ª को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करना आज की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। समय की मांग है कि भाषा कà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ के बोठसे हलà¥à¤•à¥€ और जनता तक पहà¤à¥à¤šà¥‡à¤‚। पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ के बढते सामाजिक पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ से जन सामानà¥à¤¯ में भाषा को लेकर जन - जागृति न केवल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ सà¥à¤¤à¤° पर बलà¥à¤•à¤¿ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर भी देखी जा सकती है। आज भाषा मानकीकृत रà¥à¤ª में नहीें बलà¥à¤•à¤¿ जन साधारण में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— की जाने वाली भाषा हैं।भाषा के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° के लिठउसे जन-साधारण का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना अनिवारà¥à¤¯ है, परंतॠभाषा के रूप को बिगाड़ना गलत है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किसी भी देश की भाषा और शैली उस देश की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की मूल होती है। भाषागत परिवरà¥à¤¤à¤¨ को आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करना à¤à¤• सराहनीय पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ है। परंतॠउस सीमा तक जहां तक भाषा के मूल रूप में परिवरà¥à¤¤à¤¨ न हो ।


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References


संदरà¥à¤­:-

भाषा का घालमेल; महेंदà¥à¤° मोहन, 2010, पृ सं. 04

रचना; विजयदतà¥à¤¤ शà¥à¤°à¥€à¤§à¤°, 2018 पृ. सं. 06

हिनà¥à¤¦à¥€ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ कल, आज और कल; डाॅ. पà¥à¤°à¤£à¤µ शरà¥à¤®à¤¾ , डाॅ. पà¥à¤¨à¥€à¤¤ बिसारिया, 2010

भाषा का घालमेल; राजेश तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤ ी,2010 पृ.स.10

6 से 11 विभिनà¥à¤¨ समाचार पतà¥à¤°


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